Yes, We are in debt. नमस्कार दोस्तों! क्या आप चौंक गए हैं? लेकिन ये सच है की संसार का हर मनुष्य कर्ज़दार है। कैसे और इसके पीछे क्या कारण है, हम बात करेंगे इस लेख में
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हम मनुष्य सिर्फ लेने के आदी हैं| We Are In Debt Because We Just Take.
हम विचार कर देखें तो हम पाएंगे के इस संसार का हर प्राणी किसी न किसी तरह संसार का हित कर रहा है उदाहरण के लिए वृक्ष लकड़ी, फल, छाया आदि देकर परोपकार में लगा हुए हैं। पशु-पक्षी दूध, अंडा, मांस, हड्डी इन सब से सबका भला करते हैं। इन सबके उलट हम मनुष्य, ऐसे प्राणी हैं जो सिर्फ उपभोग करने में लगे हुए हैं या कहें केवल लेने में लगे हैं। इस प्रकार हम ले लेकर इस जगत में केवल कर्जदार रह गए हैं या कहें We are in debt.
हमारे सर पर इतना कर्ज है कि यदि इसको चुकता करें तो कई जन्म व्यतीत हो जाएंगे लेकिन यह चुकेगा नहीं और मान लीजिए कि चुकाने से पहले यह शरीर नष्ट हो गया तो याद रखना यह कर्ज उस परम शक्ति या ईश्वर का है जो हमसे किसी न किसी तरह वसूल कर ही लेगा। क्योंकि हम अगर सांसारिक रूप से देखें तो बैंक या साहूकार अपना कर्ज वसूलने के लिए सामर्थ्य रखते हैं तो फिर वह ईश्वर तो अनंत शक्तिशाली है उसका क़र्ज़ चुकाने से कौन बच पाएगा भला?
वास्तव में हमारा कुछ भी नहीं है | We Own Nothing.
इस जगत में हमें सब कुछ दूसरों से मिला है। शरीर माता-पिता से मिला, विद्या गुरुओं से मिली, चलना- फिरना, उठना, बैठना, रीति-रिवाज संस्कार यह सब समाज से सीखा। पेड़ पौधों से फल सब्ज़ी, धरती से अन्न इत्यादि मिला। हम कह सकते हैं कि हमारी अपनी कहलाने वाली जो भी वस्तु है वह हमें दूसरों से मिली है।
क़र्ज़ से हो सकते हैं मुक्त | We Can Be Debt Free
संसार से प्राप्त वस्तु का सदुपयोग करते हुए उसे संसार की सेवा के द्वारा ही लौटाते चलिए। इस तरह से ही हम क़र्ज़ से मुक्त हो सकते हैं। अगर मनुष्य संसार से सिर्फ लेने की इच्छा का त्याग कर संसार को देने का स्वभाव बना ले तो वही महापुरुष या महात्मा कहलाया जायेगा। उसी को यह संसार याद करता है। अपने और अपनों के लिए कमाने और भोगों में लगे रहने वालों को तो उनके अपने भी भुला देते हैं।

हम किसी भी महापुरुष का जीवन देखें; चाहे वह एपीजे अब्दुल कलाम साहब हो या रतन टाटा जी हों या स्वामी विवेकानंद हो। हमारे समाज में इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। तभी तो कहा गया है “परहित सरस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई”
परमात्मा का विधान| The Divine Law
उस परमात्मा या परम शक्ति का विधान है कि वो लेता बहुत कम है और देता उससे कई गुना ज्यादा है फिर भी हम मनुष्य इसका थोड़ा भी चुकाने की इच्छा नहीं करते। केवल भोग संग्रह के लिए सारे जगत का दोहन करते रहते हैं। सूर्य नारायण भी पृथ्वी से थोड़ा सा जल लेकर पृथ्वी पर कई गुना बरसते हैं। इस प्रकार इस सृष्टि चक्र का जो व्यक्ति पालन नहीं करता वह चोर के समान है। आज के समय जो संसार में उथल-पुथल है जैसे महामारी कोरोना, दो देशों के बीच युद्ध, जगह-जगह पर अराजकता, असंतोष यह सब इसी का परिणाम है। That’s why we are in debt.
अतः हम सभी को चाहिए कि अपने कर्तव्य धर्म का पालन करते हुए इस जगत से जो भी हमने कर्ज या ऋण लिया है उसको इसी शरीर के द्वारा चुकता करते चलें। तभी हम इस मनुष्य जीवन को सफल बना पाएंगे।