नमस्कार मित्रों! “चाणक्य” (Chanakya) का नाम अक्सर चुनाव के समय बहुत सुनने को मिलता है। हाल ही में महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, और परिणाम भी सामने आ चुके हैं। हमारे देश में चुनावों के दौरान यह नाम बार-बार सुनने को मिलता है। यह नाम अक्सर कुछ नेताओं के साथ जोड़ा जाता है। दुर्भाग्यवश, इस प्रक्रिया में चाणक्य जैसे महान व्यक्ति की तुलना उन स्वार्थी और अवसरवादी राजनेताओं से की जाती है, जिनकी राजनीति मात्र व्यक्तिगत लाभ और परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में हमारा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी कोई कसर नहीं छोड़ता।
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मीडिया द्वारा चाणक्य (Chanakya) का नाम इस्तेमाल करना
मौजूदा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो शरद पवार, उद्धव ठाकरे, मायावती, अखिलेश यादव और प्रशांत किशोर जैसे राजनेताओं को राजनीति का “चाणक्य” कहा गया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इन नेताओं के कार्य और उद्देश्य चाणक्य के आदर्शों और सिद्धांतों के करीब भी हैं?
चाणक्य (Chanakya): त्याग और तपस्या का प्रतीक
चाणक्य (Chanakya), जिन्हें हम कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जानते हैं, न केवल एक महान विद्वान ब्राह्मण थे, बल्कि उन्होंने राष्ट्रहित के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनके कार्य केवल राष्ट्र की भलाई के लिए थे। जब उन्होंने अत्याचारी राजा धनानंद के शासन को समाप्त करने का निश्चय किया, तो अपनी तपस्या, त्याग और नीति के बल पर इसे संभव कर दिखाया।
चाणक्य (Chanakya) का उद्देश्य केवल और केवल राष्ट्रहित था। उन्होंने न केवल अत्याचारी शासन को समाप्त किया, बल्कि एक योग्य राजा, चंद्रगुप्त मौर्य, को सत्ता सौंपी। इस महान कार्य के बाद उन्होंने स्वयं राज्य का कोई पद स्वीकार नहीं किया, बल्कि वन जाकर तपस्या में लीन हो गए।
आज के राजनेताओं से तुलना अनुचित
वर्तमान समय के राजनेताओं की, जिनका उद्देश्य केवल सत्ता पाना और अपने स्वार्थ को साधना है, चाणक्य (Chanakya) जैसे महान आत्मा से कैसे तुलना की जा सकती है? ये नेता समाज और राष्ट्रहित की बात तो दूर, जाति, धर्म और भाषा के नाम पर समाज को विभाजित करने में जुटे रहते हैं। उनकी राजनीति परिवारवाद और व्यक्तिगत लाभ तक सीमित है। ऐसे में चाणक्य (Chanakya) जैसे तपस्वी और नीतिज्ञ व्यक्ति के नाम का उपयोग करना उनके आदर्शों का अपमान है।

मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारी
मीडिया का कार्य है सच और तटस्थता को सामने लाना, न कि किसी भी नेता को अनुचित रूप से चाणक्य जैसे उपमाओं से जोड़ना। अगर आज के नेताओं की तुलना करनी ही है, तो अंग्रेजी हुकूमत या मुगल शासकों से की जा सकती है, जिन्होंने सत्ता के लिए समाज को विभाजित किया और अपने स्वार्थ को सर्वोपरि रखा।
निष्कर्ष
यह अत्यंत दुखद है कि चाणक्य (Chanakya) जैसे महान व्यक्तित्व का नाम बार-बार ऐसे लोगों के साथ जोड़ा जाता है, जिनके कार्य और उद्देश्य राष्ट्रहित से कोसों दूर हैं। चाणक्य ने अपने जीवन में त्याग, तपस्या और नीतियों के बल पर राष्ट्र को दिशा दी। ऐसे में, मीडिया को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और चाणक्य (Chanakya) के नाम को उन स्वार्थी नेताओं से जोड़ने से बचना चाहिए। चाणक्य के आदर्शों और सिद्धांतों को उनके योग्य सम्मान मिलना चाहिए, और हमें उनकी विरासत को स्वार्थ की राजनीति के प्रभाव से मुक्त रखना होगा।
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं।