नमस्कार मित्रों। आज के Understanding Secularism के इस लेख में हम धर्म को, गुरु-शिष्य के मनोरंजक वार्तालाप के द्वारा, अलग नज़रिये से देखने का प्रयास करेंगे।
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गुरु महाराज और शिष्य का मिलन
सुबह-सुबह आश्रम में हलचल थी। गुरु महाराज अपने प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे, लेकिन उनके एक शिष्य के चेहरे पर बेचैनी के भाव साफ झलक रहे थे। गुरु ने पूछा, “क्या बात है, वत्स? ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम किसी गहरे विचार में डूबे हो?”
शिष्य ने कहा, “महाराज, मैं आपकी शिक्षा का सम्मान करता हूं, परंतु बार-बार धर्म का पक्ष लेना मुझे विचलित कर रहा है। क्या आप भूल गए कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश के निवासी हैं?”
गुरु मुस्कुराए, “धर्मनिरपेक्ष? यह नया शब्द तो बहुत प्रचलित हो गया है। लेकिन वत्स, इसका अर्थ क्या है?”
शिष्य का जवाब: धर्मनिरपेक्षता का युग| Understanding Secularism
शिष्य ने उत्साह से कहा, “महाराज, धर्मनिरपेक्षता का अर्थ (Understanding Secularism) है कि हम धर्म के पक्ष में नहीं खड़े होते। अगर आप इतिहास देखें, तो आप पाएंगे कि धर्म के पक्ष में खड़े होने वालों को हमेशा समाज ने तिरस्कृत किया है।”
गुरु ने गंभीरता से पूछा, “जैसे?”
शिष्य ने चुटकी लेते हुए कहा, “अयोध्या के राजा राम को ही देख लीजिए। धर्म के बिना वह एक पग भी नहीं चलते थे। अयोध्या की धर्मनिरपेक्ष प्रजा ने उन्हें वनवास दे दिया। जब वापस लौटे, तो उनकी धर्मपत्नी सीता जी को भी अयोध्या से बाहर करवा दिया गया।”
गुरु ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला, लेकिन शिष्य ने उन्हें रोकते हुए कहा, “और सुनिए, रावण का भाई विभीषण भी धर्म के पक्ष में था। लंका के धर्मनिरपेक्ष राजा रावण ने उसे लात मारकर बाहर कर दिया। यही नहीं, महाभारत के विदुर को भी धर्म के पक्ष में बोलने के कारण हस्तिनापुर से बाहर कर दिया गया।”
गुरु का सवाल: वर्तमान परिप्रेक्ष्य| Secularism In Modern World
गुरु ने शांति से पूछा, “वत्स, यह तो प्राचीन कथाएं हैं। वर्तमान में क्या यह सिद्धांत लागू होता है?”
शिष्य ने कहा, “बिल्कुल, महाराज! बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर वालों का हाल देख लीजिए। वे धर्म के नाम पर खिचड़ी बनाकर सबको खिलाते रहे, और अब परेशान हैं। आप समझते क्यों नहीं, आज का युग धर्मनिरपेक्षता का है। अगर आप भी धर्म के पक्ष में उपदेश देते रहे, तो बड़ी आफत आ जाएगी।”
इतिहास के सबक: धर्म सापेक्ष बनाम धर्मनिरपेक्षता| Understanding Secularism Vs Religiosity
गुरु ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “वत्स, इतिहास हमें यह भी सिखाता है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर किए गए निर्णयों ने कई बार समाज को दिशा हीन बना दिया।”
शिष्य ने हंसते हुए कहा, “महाराज, आप फिर पुराने समय में चले गए। क्या आपको याद है कि पृथ्वीराज चौहान धर्म सापेक्ष थे, और जयचंद धर्मनिरपेक्ष? जयचंद ने मुहम्मद गौरी के साथ मिलकर उन्हें पराजित कर दिया।”
गुरु ने गंभीरता से कहा, “और क्या तुम्हें यह भी याद है कि धर्म सापेक्ष राणा प्रताप ने धर्मनिरपेक्ष अकबर और मानसिंह के विरुद्ध संघर्ष करते हुए कभी हार नहीं मानी?”
शिष्य ने तर्क दिया, “परंतु महाराज, उन्हें घास की रोटियां खानी पड़ीं। यह धर्म के पक्ष में खड़े होने का परिणाम था।”
धर्मनिरपेक्ष समाज का व्यंग्यात्मक चित्रण| Understanding Secularism: A Satire
गुरु ने एक पल रुककर कहा, “वत्स, तुम जो कह रहे हो, वह सही हो सकता है। परंतु यह भी सच है कि धर्मनिरपेक्ष समाज में रहने वाला पुत्र अपने माता-पिता को अनाथालय में छोड़ देता है।”
शिष्य ने तुरंत जवाब दिया, “और धर्म सापेक्ष समाज में बेटा अपने धर्म के लिए लड़ाई लड़ने चला जाता है। महाराज, हमें यह समझना होगा कि वर्तमान समय धर्म सापेक्षता का नहीं है। अब तो पूरा देश ही धर्मनिरपेक्ष हो गया है।”
संवाद का निष्कर्ष: गुरु की मौन स्वीकृति| Understanding Secularism: Conclusion
गुरु ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, “वत्स, तुमने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। शायद अब मुझे तय करना होगा कि मुझे धर्म सापेक्ष रहना है या धर्मनिरपेक्ष। लेकिन यह याद रखना, धर्म और धर्मनिरपेक्षता दोनों ही समाज का हिस्सा हैं। और दोनों का संतुलन बनाए रखना ही सही अर्थ में सच्ची नीति है।”
शिष्य ने सिर झुकाया और कहा, “महाराज, आप जो भी निर्णय लेंगे, मैं उसका पालन करूंगा। परंतु कृपया धर्म के पक्ष में बार-बार उपदेश देकर समाज को असहज न करें।”
गुरु मुस्कुराए और बोले, “वत्स, यह निर्णय समय पर छोड़ देते हैं।”
अंतिम पंक्ति:
धर्म और धर्मनिरपेक्षता का यह खेल चलता रहेगा। कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह तो समाज की सोच और समय ही तय करेगा। इस व्यंग्य का उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना नहीं है।