नमस्कार दोस्तों! आज बात करेंगे महाकुंभ (Kumbh Mela) की। भारत, विभिन्न तीर्थ और धर्मस्थलों से परिपूर्ण एक ऐसा देश है, जहां समय-समय पर विभिन्न धार्मिक पर्व और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं पर्वों में से एक अद्भुत और विशाल आयोजन है कुंभ मेला, जिसे पूरी दुनिया भारत की धार्मिक आस्था और संस्कृति के प्रतीक के रूप में जानती है। कुंभ में करोड़ों श्रद्धालु नदी में स्नान करते हैं।
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कब और कहाँ आयोजित किया जाता है कुम्भ?| When And Where Kumbh Mela Held?
कुंभ हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में हर बारह वर्ष बाद आयोजित होता है। विशेष रूप से प्रयागराज में दो कुंभ के बीच में 6 वर्ष के अंतराल पर एक अर्ध कुंभ भी आयोजित किया जाता है। जो कि केवल प्रयागराज में ही देखने को मिलता है। 2025 में प्रयागराज में पुनः कुंभ लगने जा रहा है।
कुंभ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ| Kumbh, Ardh Kumbh & Maha Kumbh
प्रयागराज में 2025 में लगने वाला कुंभ, पूर्ण कुंभ होने के साथ-साथ महाकुंभ भी है। जो की मान्यता अनुसार बहुत ही पावन माना जाता है। जिस प्रकार 12 वर्षों बाद पूर्ण कुंभ और 6 वर्षों के बाद अर्ध कुंभ लगता है वैसे ही 12 पूर्ण कुंभ के बाद अर्थात 144 वर्षों के बाद महाकुंभ लगता है। जो कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक आकर्षण का विषय है। साथ ही वैश्विक पटल पर यह कुंभ भारत की गरिमा और प्रतिष्ठा को मजबूत करता है।
ज्योतिष मान्यताएं| Kumbh Mela Astrological Beliefs
ज्योतिष के अनुसार यह कुंभ पौष माह की पूर्णिमा के दिन आरंभ होता है। मकर संक्रांति इसका विशेष पर्व माना जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा वृश्चिक राशि में और बृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को शाही स्नान योग कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोक के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोक की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। इस दिन कुंभ में स्नान करना साक्षात स्वर्ग प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। पौराणिक विश्वास के अनुसार , ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है।

कुंभ के आयोजन को लेकर पौराणिक कथा| Why Kumbh Mela is Celebrated?
कुंभ से जुडी सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मन्थन से प्राप्त अमृत कुम्भ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इन्द्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मन्थन करके अमृत निकालने की सलाह दी। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर सम्पूर्ण देवता दैत्यों के साथ सन्धि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए।
अमृत कुम्भ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयन्त का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयन्त को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चन्द्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शान्त करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अन्त किया गया।
अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरन्तर युद्ध हुआ था।
देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुम्भ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है। जिस समय में चन्द्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चन्द्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुम्भ का योग होता है अर्थात जिस राशि पर सूर्य,चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुम्भ पर्व होता है।
कुंभ का महत्व| Kumbh Mela Significance
कुंभ केवल पर्यटन तक ही सीमित नहीं है। यह भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जनमानस के लिए एक आस्था का विषय है और संस्कृति और संस्कार का अद्भुत समागम है। एक ऐसा समागम जिसमें सभी सन्यासी, सभी आमजन, बिना जाति भेदभाव, बिना राग द्वेष एक घाट पर स्नान करते हैं और भारतीय संस्कृति को पुष्ट करते है। श्रद्धालुओं को कुंभ का बेसब्री से इंतजार रहता है। यह न केवल आस्था बल्कि सनातन संस्कृति का अद्भुत समागम है।
कुंभ का इतिहास| Kumbh Mela History
Kumbh Mela का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।
- पौराणिक काल: कुछ ग्रंथों में उल्लेख है कि कुंभ मेले का आयोजन सतयुग से ही हो रहा है। समुद्र मंथन की कथा के साथ जुड़ी हुई यह परंपरा भारत के धार्मिक इतिहास का अभिन्न अंग बन चुकी है।
- गुप्त काल: कुछ विद्वानों का मत है कि कुंभ मेले की परंपरा गुप्त काल में प्रारंभ हुई।
- सम्राट हर्षवर्धन का योगदान: प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कुंभ मेले का वर्णन किया। उन्होंने उल्लेख किया कि राजा हर्षवर्धन ने संगम तट पर बड़े आयोजन किए, जहां वे अपना सम्पूर्ण धन गरीबों और संतों को दान कर देते थे।
- आधुनिक परंपरा: आधुनिक कुंभ मेले की शुरुआत का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। उन्होंने कुंभ मेले को व्यवस्थित रूप प्रदान किया और संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर शाही स्नान की परंपरा स्थापित की।
निष्कर्ष| Kumbh Mela: Conclusion
महाकुंभ भारतीय संस्कृति और आस्था का अद्भुत उत्सव है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज और संस्कृति को वैश्विक मंच पर मजबूत करता है। Kumbh Mela वह अवसर है जहां आस्था, परंपरा, और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है और इसे अनुभव करना जीवन में एक बार अवश्य होना चाहिए।