नमस्कार मित्रों! आज Good Parenting Tips के इस आर्टिकल में हम बात करेंगे कि समाज में बच्चे बिगड़ रहे हैं और इसका उत्तरदाई कौन है? इसके अलावा हम ये समझेंगे कि बच्चों को सही मार्ग पर लाने के लिए क्या करना चाहिए।
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माँ-बाप के सपने, बच्चे| Children, the Aspirations of Parents
जिस बच्चे के पैदा होने पर उसकी खुशी में गांव भर में मिठाइयां बांटी जाती है और कई दिनों तक उत्सव मनाया जाता है। बच्चे की तुलना सूरज, चंदा और तारों से करते हैं और उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसी दिन से प्रयास करना शुरू कर देते हैं और अनेक आशाओं की डोर बांध लेते हैं कि हमारा बच्चा हमारी कीर्ति को बढ़ाएगा; स्वयं सुखी रहकर हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। बाद में वही बच्चा जिसमें हमने अपनी कल्पनाओं की डोर बाँधी थी क़ि ये हमें चांद जैसी शीतलता देगा और सूरज की तरह हमारे तेज को फैलाएगा, हमें अपना दुश्मन समझने लगता है।
बच्चों के बिगड़ने में किसका दोष है?| Who’s Responsible for Children Going Astray?
आखिर गलती कहां हुई? वह बच्चा चांद जैसी शीतलता देने की जगह हमारे ऊपर बर्फ डालने लगा। सूरज जैसा प्रकाश करने की जगह अंगारे बरसाने लगा। अब हम स्वयं की ओर दृष्टि डालें कि इसके माता-पिता तो हम ही है और इसके प्रथम गुरु भी हम हैं। यह तो केवल कच्ची मिट्टी के जैसा था। इसको आकर तो हमें देना था। अगर गलती हुई है तो इसके दोषी हम खुद ही पाए जाएंगे।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी हैं अच्छी परवरिश का महत्व| Good Parenting Is Emphasized in Ancient Scriptures
महाभारत के दोषी धृतराष्ट्र ठहराए गए ना कि दुर्योधन। अब बात महाभारत काल की आ ही गई है तो एक बार उधर दृष्टि डालते हैं। एक ही राजवंश जिसमें आगे जाकर एक भाई के पुत्र कौरव और एक के पांडव कहलाए। दुर्योधन और बाकी कौरवों का बचपन महलों और सभी सुख सुविधाओं में बीता। दूसरी ओर पांडवों का बचपन आश्रम में बीता जो कि जंगल में था। वहां उनके मित्र ऋषि मुनि और उनके बालक थे। बगैर पिता के, प्रतिकूल परिस्थितियों में और केवल माता के सानिध्य में उन्होंने अपना बचपन बिताया।
देखने वाली बात है कि माता-पिता और सभी सुख सुविधा होने पर भी उनके बच्चे अन्याय और अत्याचारी हुए। इसका कारण है कि पिता मोह का अंधा था और माता ने भी ममता की पट्टी बांध रखी थी। कहने का तात्पर्य है कि आज भी अधिकतर माता-पिता का प्रेम धृतराष्ट्र और गांधारी के जैसा देखने में आता है और इस प्रकार के मोह-ममता में अंधे माता-पिता को अपने बच्चों की कोई कमी या दोष दिखाई नहीं देते। क्योंकि दोनों की आंखें बंद है इस प्रकार के माता-पिता को अंत में रोना ही पड़ेगा।
माँ-बाप का अन्धा प्रेम है बच्चों के पतन का कारण| Blind Parental Love: The Root Cause of a Child’s Downfall
मोह-ममता के अंधे माता-पिता, अपने बच्चों की हर फरमाइश को पूरा करने में लग जाते हैं। उनका बच्चा भी मनमानी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करवाता है। अपनी मनमानी करने के लिए वह हर तरीका या हर संभव प्रयास करता है। जैसे रूठ जाना, रोना, खाना छोड़ना आदि। ममता के अंधे माता-पिता को आखिरकार जिद्दी बच्चे की बात मानना ही पड़ती है। इसे ही माता-पिता बच्चों के प्रति अपना प्रेम समझते हैं। जिस चीज के लिए वह जिद कर रहा है उसके दुष्परिणामों की ओर माता-पिता का ध्यान भी नहीं जाता। जबकि माता-पिता और गुरु का कर्तव्य है कि वह बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए हमेशा सतर्क रहें।
माँ-बाप का कठोर होना भी है जरुरी| Parental Strictness: Is It A Necessary Part of Parenting?
बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए बाहरी कठोरता भी जरूरी है। कठोरता ऐसी हो जैसे घड़ा बनाते समय कुम्हार। इसमें पिता का किरदार ऐसा हो की बचपन से उसके बच्चों को लगे कि अगर मैंने गलती की तो मेरा बाप मुझे बगैर ताड़ना दिए छोड़ेगा नहीं। बाप में उसे दुश्मन दिखाई देना चाहिए। माता का किरदार रामायण की कैकई माता जैसा हो कि चाहे कितना बड़ा कलंक क्यों न लग जाए मुझे अपने बच्चों को महान बनाना है। “राम वन गए तो बन गए”। इस किरदार में मोह ममता रूपी नकली किरदार को मारना पड़ेगा। असली प्रेम अपने बच्चों के प्रति वह है जिसमें बच्चों का उज्जवल भविष्य का निर्माण हो।
कठिन परिस्थितियों में निखरता है जीवन| Challenges Bring Out the Best in Life
बच्चों के जीवन में आने वाली प्रतिकूलता ही उसके भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होती है। उसके शारीरिक और बौद्धिक स्तर को मजबूत बनाती है। महाभारत के प्रकरण में यह देखने में आता है कि पांडवों का बचपन प्रतिकूलताओं से भरा हुआ था इसलिए वह कौरवों से हर क्षेत्र में श्रेष्ठ थे और उनकी श्रेष्ठता ही कौरवों की ईर्ष्या का कारण बनी। इसलिए बच्चों को साधन सुख के अलावा प्रतिकूलताओं के लिए गांव जैसी जगह पर कुछ समय छोड़ना चाहिए।

शिक्षा, नियम और मित्रता| Education, Moral Obligations & Peers
शिक्षा के प्रति विशेष सावधानियां रखनी चाहिए। शिक्षा केवल जीविका कमाने वाली ना हो बल्कि जीवन बनाने वाली हो। शिक्षा के लिए ऐसे संस्थान या विद्यालय का चयन करें जहां पर शिक्षा के साथ संस्कारों का ज्ञान भी मिले। संगत या मित्रता का भी माता-पिता को विशेष ध्यान रखना चाहिए। बच्चों की संगत अपने से श्रेष्ठ बच्चों से हो। बच्चों को कुसंगति दुष्ट ही बनाएगी।
बच्चों में जीवन नियमों को अपनाने की आदत डालें। बच्चों को नियमों में बांधने से और ताड़ना देने से बच्चों का उच्छल मन शांत होने लगेगा। क्योंकि आपका बच्चा नहीं जानता कि उसके लिए क्या उपयोगी है, उसे क्या छोड़ना चाहिए, क्या अपनाना चाहिए। उसकी बुद्धि इतनी विकसित नहीं है कि उसे सही गलत का ज्ञान हो। क्योंकि बेचैन मन तो बड़ों का भी पतन कर देता है। बच्चा धीरे-धीरे मन मानी करना बंद कर देगा।
अच्छा वातावरण: अच्छी परवरिश| A Positive Environment: The Foundation of Good Parenting
माता-पिता को रहने के लिए ऐसा स्थान का चुनाव करना चाहिए जहां सात्विक व्यक्ति के लोग रहते हों। इसके लिए घर में भी सात्विक वातावरण बनाने के लिए हम बुजुर्गों और बच्चों के माता-पिता को नियमित पूजा अर्चना और धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि सात्विक वातावरण में जितना आपका बच्चा रहेगा उतना ही उसका जीवन स्तर ऊंचा होगा।
वर्तमान समय की स्थिति यह हो चली है कि घर में बुजुर्ग माता-पिता की धार्मिक ग्रंथ जैसे- रामायण, गीता या भागवत में रुचि देखने को नहीं मिलती। धार्मिक ग्रंथो में इतना सामर्थ्य होता है कि वह सात्विक वातावरण पैदा कर सके। बच्चों की नकारात्मकता और अश्लीलता भरे विचारों में मोबाइल और टीवी का बहुत बड़ा हाथ है। क्योंकि अश्लीलता और गलत विचार बच्चों के मन में बहुत जल्दी प्रवेश कर जाते हैं।
निष्कर्ष| Good Parenting Tips: Conclusion
आप कितना भी धन या प्रतिष्ठा अर्जित कर लें यदि आपका बच्चा बिगड़ गया तो सब बेकार हो जाएगा आप जीवन में तभी सफल माने जाएंगे जब आपका बच्चा शिक्षित और संस्कारी होगा। आज समाज में जो भी नैतिक पतन देखने में आ रहा है और जो भी तरह तरह के जघन्य अपराध नाबालिकों द्वारा किए जा रहे हैं इसके मूल में कहीं ना कहीं माता-पिता या आज का बुजुर्ग है। जब बच्चे छोटे थे तब उसने अपने कर्तव्यों का सही निर्वाहन नहीं किया होगा और बुजुर्ग होकर भी अपने कर्तव्य को नहीं समझा होगा। लेकिन इनकी आदत है कि बस यह आज की पीढ़ी को दोष देकर रोते रहते हैं।
ऐसा नहीं है कि हर माता-पिता ऐसे ही हैं। आज भी देखा जा सकता है कि जहां माता-पिता अपने कर्तव्यों का सही-सही पालन कर रहे हैं उनके बच्चे आगे जाकर समाज में उनका नाम बढ़ाते हैं। उनका बचा हुआ समय भगवान के भजन और धार्मिक ग्रंथो के पठन-पाठन में गुजर रहा है। अधिकतर मां-बाप आज के समय में अपनी निकम्मी औलादों की व्यवस्था बनाने में पूरी उम्र गुजार देते हैं। उन माँ -बाप को अपने जीवन के प्रति कोई पश्चाताप भी नहीं होता। रामायण की एक चोपाई: “हृदय बहुत दुखि लागि, जन्म गयो हरि भजन बिन|”
नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं। आपके विचार इससे भिन्न हो सकते हैं। क्योंकि बच्चों की परवरिश एक विस्तृत विषय है। (These are the author’s personal views. Your perspective may differ, as parenting is a broad and nuanced subject.)