नमस्कार दोस्तों। अभी हाल ही में सोशल मीडिया, टीवी मीडिया और प्रिंट मीडिया पर Ideal Work Week के बारे में बहुत कुछ कहा-सुना जा चुका है। यह सही है कि ऊंचाई पर पहुंचने के लिए मेहनत जरुरी है लेकिन इस मेहनत को करते-करते अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता को लाँघ जाना कहां तक सही है? इस आर्टिकल में हम इस पर चर्चा करने वाले हैं।
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L&T के चेयरमैन के बयान से मचा बवाल
जी हां दोस्तों !अभी कुछ दिन पहले L&T के चेयरमैन एस. एन. सुब्रमण्यन ने सप्ताह में 90 घंटे काम करने की वकालत की थी। उन्होंने कहा कि उनका बस चले तो वह अपने एम्पलाइज को संडे में भी काम करने के लिए बुलवा लें। उन्होंने आगे यह भी कहा कि घर पर आप अपनी बीवी को कब तक घूरेंगे और आपकी बीवी आपको कब तक घूरेगी? इससे अच्छा है कि काम पर ध्यान दिया जाए। उनके इस बयान के बाद Ideal Work Week पर फिर नयी बहस छिड़ गयी।
2023 में नारायण मूर्ति ने भी दिया था ऐसा बयान
2023 में इन्फोसिस के फाउंडर एन. आर. नारायण मूर्ति ने भी इसी तरह कासुझाव दिया था कि भारत के युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे तक काम करना चाहिए। अगर भारत को ऊंचाई पर पहुंचना है और दुनिया के विकसित देशों की बराबरी करनी है तो यही एक तरीका है कि अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जाए और दूसरे देशों के साथ इस गैप को काम किया जाए। नारायण मूर्ति जी के इस बयान के बाद भी काफी हलचल हुई थी। कुछ लोगों ने ऐसी कार्यशैली (work ethics) की जमकर तारीफ की थी जबकि कुछ लोगों ने इस तरह के लॉन्ग वर्किंग वीक की वजह से होने वाले मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम्स और फैमिली प्रॉब्लम्स को हाईलाइट किया था।
एलोन मस्क भी कर चुके हैं लंबे Work Week की वकालत
टेस्ला और स्पेस एक्स के सीईओ एलोन मस्क भी लगातार और कई घंटे तक काम करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भी कहा था कि दुनिया बदलने के लिए हफ्ते में 80 से 100 घंटे काम करना जरूरी है। उनकी अपनी लाइफस्टाइल इसी फिलॉसफी पर है। हालांकि मस्क के इस बयान को भी कुछ लोगों ने आड़े हाथों लिया था और कहा था कि यह ‘हसल कल्चर’ लंबे समय तक कारगर नहीं है।
जैक मा भी थे इसके समर्थक
जब लम्बे वर्किंग ऑवर की बात हो और जैक मा (‘अलीबाबा’ के फाउंडर) पीछे छूट जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है? उन्होंने चीन में ‘996’ कल्चर को बढ़ावा दिया। इसका मतलब है सुबह 9:00 से लेकर रात 9:00 तक काम करना वह भी हफ्ते के 6 दिन। जैक मा ने इसे सक्सेस के लिए जरूरी बताया था और उनके भी बयान पर लोगों ने सवाल उठाए थे कि यह तो शोषण है और इसमें इंसान की पर्सनल लाइफ तो ख़तम है।

आनंद महिंद्रा भी हो चुके हैं इस बहस में शामिल
अभी शनिवार को नई दिल्ली में हुए नेशनल यूथ फेस्टिवल में महिंद्रा ग्रुप के अध्यक्ष श्री आनंद महिंद्रा ने कहा कि क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा की कितनी देर तक काम किया यह मायने नहीं रखता आप उसमें कितना क्वालिटी आउटपुट दे पा रहे हैं यह ज्यादा मायने रखता है।
उनका बयान कुछ इस प्रकार था- ”हमें काम के क्वालिटी पर फोकस करना चाहिए ना की क्वांटिटी पर। यह 40 घंटे, 70 घंटे और 90 घंटे के बारे में नहीं है। आप आउटपुट क्या दे रहे हैं, यह इस बारे में है। अगर हफ्ते के 10 घंटे में भी वो आउटपुट निकल कर आ रहा है तो एक जानदार बदलाव लाने के लिए यह काफी है।
इसी के साथ श्री महिंद्रा जी ने संतुलित जीवन (Ideal Work Week) के महत्त्व को भी बताया। जिसमें उन्होंने आर्ट, कल्चर और फैमिली टाइम की बात की। जिससे लीडरशिप और डिसीजन मेकिंग क्षमता को इंप्रूव किया जा सके। उन्होंने कहा कि अपनी फैमिली और दोस्तों के साथ टाइम स्पेंड करने से आपकी क्रिएटिविटी और लीडरशिप में इजाफा होता है। अगर हम दिन भर ऑफिस में ही रहेंगे और अपने फैमिली के साथ समय नहीं बताएंगे तो हम दूसरों की फैमिली के बारे में कैसे जानेंगे और हम कैसे समझेंगे कि लोग क्या खरीदना चाहते हैं?
हर्ष गोयनका ने भी 90 घंटे के वर्क वीक की आलोचना की
आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन, हर्ष गोयनका ने भी 90 घंटे के वर्किंग वीक वाले बयान पर अपनी चिंता को जाहिर किया। उन्होंने ट्वीट के जरिए कहा कि “संडे’ को ‘सन ड्यूटी’ नाम क्यों नहीं दे देते? उन्होंने कहा कि हार्ड वर्क जरूरी है लेकिन यह खुद की सेहत से बढ़कर नहीं है। वर्क लाइफ बैलेंस कोई विकल्प नहीं, एक आवश्यकता है।

गौतम अडानी का भी मजाकिया बयान आया सामने
गौतम अडानी ने इस तरह के वर्किंग कल्चर को पर्सनल चॉइस बताया। फैमिली टाइम के बारे में बात करते हुए गौतम अडानी ने कहा कि अगर 8 घंटे फैमिली के साथ बिताएंगे तो बीवी भाग जाएगी।
आखिर कैसे किया जाए वर्क लाइफ को बैलेंस?| How To Achieve Work-Life Balance?
इंसान को कितने घंटे काम करना चाहिए। यह काम के नेचर और कई दूसरे फैक्टर्स पर निर्भर करता है। इस फैक्टर्स में उसकी पर्सनल चॉइस भी शामिल है। अगर एक आदर्श वर्क लाइफ की बात है तो नीचे दिए गए प्वाइंट्स में से कुछ लागू किये जाएं तो आसानी हो सकती है।
- सख्ती के बजाय लचीलापन- सब पर एक जैसे नियम को लागू करने के बजाय, कंपनीज़ को अपनी पॉलिसीज को थोड़ा सा लचीला बनाना चाहिए और सभी को अपनी क्षमता के अनुसार काम करते हुए एक सामूहिक लक्ष्य की ओर काम करने पर ध्यान देना चाहिए।
- परिणाम आधारित काम- कितने घंटे काम किया इस पर ध्यान देने की जगह उसका परिणाम क्या निकल कर आ रहा है इस पर ध्यान देना चाहिए। इससे आप उत्पादन बढ़ाने के साथ कर्मचारियों को संतुष्ट भी कर सकते हैं।
- वेलफेयर को ऊपर रखना- कंपनीज़ को मानसिक सहायता प्रोग्राम और मनोरंजन से जुड़े प्रोग्राम में इन्वेस्ट करना चाहिए जिससे कर्मचारियों को काम बोझ नहीं लगेगा।
- टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना- ऑटोमेशन और डिजिटल टूल्स से वर्कलोड को आसानी से मैनेज किया जा सकता है। जिससे कर्मचारी ज्यादा दबाव लिए बगैर अच्छे से अपनी रणनीति और क्रिएटिविटी पर काम कर सकते हैं।
- स्थानीय संस्कृति को महत्व देना- कम्पनीज को काम के घंटों में ध्यान देने की जगह वहां के लोकल कल्चर, सामाजिक और आर्थिक चलन के हिसाब से अपनी नीतियां बनाना चाहिए।
निष्कर्ष| Conclusion: Ideal Work Week
इस तरह की बहस का कोई अंत नहीं है कि कितने घंटे काम करना चाहिए या असल में Ideal Work Week क्या है? यह व्यक्ति और कंपनी दोनों की महत्वाकांक्षा और लक्ष्य पर निर्भर करता है। जहां एक तरफ ज्यादा समय तक काम करने की वकालत करने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ पर्सनल लाइफ और वर्क लाइफ बैलेंस को महत्व देने वाले लोग भी हैं।
कुछ भी लागू करने से पहले किसी नीति का लंबे समय तक क्या प्रभाव पड़ सकता है और कर्मचारियों के मानसिक, शारीरिक सेहत को नुकसान पहुंचा बिना आप कैसे लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं, इस पर ध्यान देना चाहिए। लक्ष्य हासिल करना अच्छी बात है लेकिन उस लक्ष्य को हासिल करते-करते जीवन ही ना जिया जाए तो फिर ऐसे परिश्रम का क्या फायदा?
इसका दूसरा पहलू ये भी है कि किसी को अगर काम में मजा आ रहा है और उसको काम का जूनून है तो कितने भी घंटे काम करो, क्या फ़र्क़ पड़ता है?
अगर आपके मन में इसको लेकर कोई भी सुझाव है तो हमसे जरूर साझा कीजिएगा, धन्यवाद।