नमस्कार दोस्तों! आज हम बात करेंगे Role of Intellectuals in Society (बुद्धिजीवियों की समाज में भूमिका) की। आज के समय में जब हम सब आये दिन दो समुदायों के बीच टकराव की घटनाएं देखते और सुनते हैं तो इस पर मंथन करना आवश्यक है। जुड़े रहिए हमारे साथ….
Table of Contents
राष्ट्र की चिंता: सबकी जिम्मेदारी
राष्ट्रहित की चिंता हर नागरिक का कर्तव्य है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय या वर्ग का हो। हाल ही में कुछ बुद्धिजीवियों ने अजमेर दरगाह के सर्वे को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, जिसमें यह कहा गया कि इस सर्वे से अशांति का वातावरण बन सकता है और अल्पसंख्यक वर्ग असुरक्षित महसूस कर सकता है। यह चिंता सही हो सकती है, लेकिन यह भी जरूरी है कि राष्ट्रहित और मानवीय मूल्यों पर आधारित व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जाए।
असुरक्षा का प्रश्न: कौन है वास्तव में असुरक्षित?
आज यह प्रश्न उठता है कि वास्तव में कौन असुरक्षित है? अल्पसंख्यक वर्ग, जिनके पास कई देशों में संरक्षण है, या बहुसंख्यक वर्ग, जिन्हें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और कश्मीर जैसे स्थानों से भगाया गया? जहाँ-जहाँ बहुसंख्यक हिंदुस्तानी अल्पसंख्यक बने, वहाँ से उन्हें विस्थापित होना पड़ा।भारतीय बहुसंख्यक वर्ग के पास अपना कोई अन्य देश नहीं है। यदि यहाँ से भी वे हाशिए पर धकेले गए, तो उनके पास विकल्प क्या होगा? इस तथ्य को समझना जरूरी है कि असुरक्षा का यह सवाल बहुसंख्यकों के लिए कहीं अधिक गंभीर है।
भारतीय संस्कार: एकता की नींव
भारतीय संस्कृति का आधार “वसुधैव कुटुंबकम” है। यह वही संस्कार है, जो आने वाले मेहमानों को भी भोजन कराता है, भले ही खुद भूखा रहे। यही कारण है कि बहुसंख्यक समुदाय के बीच अल्पसंख्यक सदैव सुरक्षित रहे हैं। अगर बुद्धिजीवी वास्तव में चिंतित हैं, तो उन्हें हर वर्ग, धर्म और संप्रदाय में व्याप्त उन मूल्यों को समर्थन देना चाहिए, जो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं।
अन्याय पर मौन: विनाश का मार्ग
यदि समाज का प्रबुद्ध वर्ग सही को सही और गलत को गलत कहने में असफल रहता है, तो इसका परिणाम विनाशकारी होगा। इतिहास इसका गवाह है। भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य जैसे व्यक्तित्व अन्याय पर मौन साधे रहे, और इसका परिणाम महाभारत के विनाशकारी युद्ध के रूप में सामने आया।
राजनीतिक स्वार्थ और समाज को बांटने का खेल
आज की राजनीति का एक बड़ा हिस्सा वर्ग, जाति और धर्म के आधार पर समाज को बांटने में लगा है। राजनीतिक दल खुद को किसी विशेष वर्ग का हितैषी साबित करने के लिए समाज में विभाजन पैदा कर रहे हैं। इन्हें न तो राष्ट्र की चिंता है और न ही समाज की। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि हम “बटेंगे तो कटेंगे” के सिद्धांत को समझें और एकता को अपनाएं।
समाज में भाईचारे की आवश्यकता| Role of Intellectuals in Society For Communal Harmony
आज राष्ट्र को भाईचारे और सौहार्द की आवश्यकता है। समाज के हर वर्ग को, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, या सिख हो, अन्याय और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ खड़ा होना होगा। अगर कोई समुदाय राष्ट्रविरोधी कार्य करता है तो उस समुदाय के लोगों को ही सबसे पहले उसे रोकना चाहिए। जब समाज में अन्याय को रोका जाएगा, तभी संघर्ष समाप्त होगा। जो लोग हिंदू राष्ट्र, मुस्लिम राष्ट्र या खालिस्तान जैसी अवधारणाओं को बढ़ावा दे रहे हैं, उनके मंसूबे तभी विफल होंगे, जब समाज एकजुट होगा।
भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना
भारतीय संस्कृति आपसी सौहार्द और भाईचारे की मिसाल रही है। आज आवश्यकता है कि इस संस्कृति को फिर से संजीवित किया जाए और पूरी दुनिया को दिखाया जाए कि भारतीय समाज अपनी एकता और सहिष्णुता के कारण महान है। हर राष्ट्रभक्त से अनुरोध है कि इस दिशा में आज ही से काम शुरू करें। समाज में प्रेम, एकता और भाईचारे को बढ़ावा देकर हम एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
निष्कर्ष| Role of Intellectuals in Society: Conclusion
राष्ट्रहित को प्राथमिकता देना हर नागरिक का दायित्व है। चाहे बुद्धिजीवी (Intellectual) हों, आम जनता हो, या कोई अन्य वर्ग—सभी को एक साथ मिलकर भारत को एकता और समृद्धि की ओर ले जाना होगा।