नमस्कार दोस्तों! आज बात करेंगे Women Rights Misuse की। क्योंकि वार्ताकार समय-समय पर अपने पाठकों के लिए समाज से जुड़े हर मुद्दे को उठाता रहा है। उन सभी मुद्दों पर भी आवश्यक प्रकाश डालता है जो आपके जीवन में किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं।
भारतीय समाज में है महिलाओं का सर्वोच्च स्थान और विशेषाधिकार
दोस्तों। बात अगर भारतीय समाज की हो तो इतिहास और संस्कृति में महिलाओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में बराबर का सहयोगी स्वीकार किया है। संविधान और संसद द्वारा विशेष कानून के माध्यम से संरक्षण दिया गया है।
Women Rights Misuse: महिलाओं द्वारा प्रताड़ित पुरुष
महिलाओं ने उन्हीं कानून को पुरुष समाज के लिए प्रताड़ना का हथियार बना लिया है। जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं वर्तमान परिवेश में घट रही घटनाओं के संदर्भ में जहां नारी सशक्तिकरण का तात्पर्य पुरुष को प्रताड़ित करना हो गया है। नारी अबला है तो यह मान लिया जा रहा है कि पुरुष के द्वारा ही सताया गया होगा।
परंतु वर्तमान स्थिति इससे भिन्न है। जहां स्त्रियों के द्वारा कानून की आड़ में पुरुषों और उनके परिजनों को प्रताड़ित किया जा रहा है और न केवल प्रताड़ित किया जा रहा है अब तो इस हद तक परेशान किया जा रहा है कि आत्महत्या जैसी घटनाएं भी सामने आने लगी है।
Women Rights Misuse पर सुप्रीम कोर्ट और रिपोर्ट्स के चौंकाने वाले आंकड़े
एक रिपोर्ट के अनुसार माननीय सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट ) ने भी यह माना है कि महिलाओं द्वारा घरेलू हिंसा के 70% मामले निराधार अथवा द्वेष पूर्ण तरीके से लगाए हुए होते हैं। वही एक रिपोर्ट के अनुसार दहेज प्रताड़ना के मामलों में 80% मुकदमे झूठ पाये जा रहे हैं और सिस्टम द्वारा भी यह मान लिया जाता है कि पुरुष ही विलन है।
बेंगलुरु घटना: अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला
हाल ही में बेंगलुरु में घटी घटना, जिसमें अतुल सुभाष ने अपनी पत्नी व ससुराली जनों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के चलते आत्महत्या कर ली, इस बात का ताजा उदाहरण है। यह तो एक मात्र घटना है ऐसी न जाने कितनी घटनाएं देश में आए दिन घट रही हैं। वहीं परिवार न्यायालय की बात करें तो महिलाओं को यह कहते सुना जा सकता है कि वह अपने ईगो अथवा किसी द्वेष के चलते पुरुषों पर मुकदमे लगा रही है।
अधिकांश निराधार महिला उत्पीड़न मामले इसलिए भी लगाए जा रहे हैं कि कानून ने महिलाओं को विशेष अधिकार दे रखे हैं। जिसके चलते महिलाएं अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं। विशेषज्ञों की माने तो किसी भी वर्ग को विशेष अधिकार दे देना एक न एक दिन दुरुपयोग किए जाने की आशंका को उत्पन्न करता है। साथ ही दूसरे वर्ग को कटघरे में खड़ा करता है।
कानून का दुरुपयोग और समाज पर प्रभाव
कुटुंब न्यायालय के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं की एक बड़ी संख्या निकलकर आती है जो स्वीकारती है कि उसने पति या ससुराली पक्ष पर मुकदमा केवल इसलिए कर दिया कि उसका ईगो सेटिस्फाइड हो सके। क्या ऐसे कानून पुरुषों के लिए घातक सिद्ध नहीं हो रहे हैं ? क्या इस तरीके की घटनाएं अन्य तरीके के अपराधों को बढ़ावा नहीं देंगी ?
समाज और सिस्टम की पूर्वधारणा: पुरुष ही दोषी क्यों?
समाज और सिस्टम में एक धारणा बनी हुई है कि महिला पर अत्याचार हुआ है तो वह पुरुष ने ही किया है।साथ ही सोशल मीडिया और नुक्कड़ चर्चाओं के माध्यम से इस बात को और अधिक गंभीरता से सिद्ध कर दिया जाता है कि पुरुष ही दोषी है। ऐसे में पुलिस प्रशासन और सिस्टम की भूमिका तो संदिग्ध हो ही जाती है। साथ ही न्यायालय से भी लोगों का विश्वास डगमगाने लगता है।
कानून में संशोधन और सोच में बदलाव की आवश्यकता
अतुल सुभाष के सुसाइड नोट में भी इस बात का जिक्र किया गया है कि पुलिस प्रशासन की लापरवाही, पुलिस अधिकारियों की अनदेखी और जज की एक तरफा पक्षपाती मानसिकता अतुल की आत्महत्या का कारण बनी है । जहां एक तरफ पुरुष वर्ग ने महिलाओं को देवी की उपाधि दे रखी है। वहीं कानून की कठोरता, जो कि महिलाओं के हित के लिए बनाई गई थी, वह अब पुरुष का अहित करने लगी है। ऐसे में न केवल कानून में संशोधन की आवश्यकता है। साथ ही समाज की सोच व दृष्टिकोण में भी परिवर्तन की आवश्यकता है।
Women Rights Misuse पर हमारी राय
वार्ताकार आप सभी को इस लेख के माध्यम से अपील करना चाहता है कि ऐसे प्रकरण में विवेक से काम लेते हुए निष्पक्ष तरीके से किसी भी बात को समझें। किसी भी कानून के दुरुपयोग एवं किसी भी पक्ष के पीड़ित होने के पूर्वाग्रह को कम करने में अपना योगदान दें।
1 thought on “Women Rights Misuse| क्या नारी सशक्तिकरण बन गया है पुरुष प्रताड़ना का माध्यम? Gender Equality in 2025”